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सड़क सुरक्षा

सड़क सुरक्षा

  • पैदल चलने वाले
  • बस से यात्रा करने वाले
  • दुपहिया चलाने का सुरक्शित तरीका
  • बस एवं ट्रक चालक
  • बच्चों के लिए सड़क सुरक्षा
  • तेज रफ्तार के खतरे
  • प्राथमिक सहायता

पैदल चलने वाले

सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों में बड़ी संख्या पैदल चलने वालों की होती है। इनमें भी अधिकांश 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं। हालांकि सड़क दुर्घटना में शामिल लोगों में वृद्धों की संख्या कम होती है लेकिन इनको चोट लगना ज्यादा घातक होता है।

कारण :

  • अल्कोहल बाधिता : ज़्यादातर वयस्क राहगीरों की मौत इसी वजह से होती है। अल्कोहल के प्रभाव में होने पर वाहन चालक तत्काल निर्णय लेने की क्षमता खो बैठते हैं जिसकी वजह से दुर्भाग्यपूर्ण हादसे हो जाते हैं।
  • वाहनों की अत्यधिक आवाजाही : शहर के भीतरी भाग में वाहनों की आवाजाही काफी ज्यादा होती है और पैदल राहगीरों की संख्या भी बहुत होती है जिस कारण पैदल राहगीरों को सड़क पार करने में वाहनों के बीच से बच-बच कर निकालना पड़ता है।
  • पैदल राहगीरों के लिए पर्याप्त जगह की कमी : दिल्ली में कुछ सड़कें इतनी संकरी हैं कि वहाँ और पैदल राहगीर अगल-बगल चलते हैं। ऐसे में राहगीरों के पीछे से आते वाहनों से टकरा जाने का भारी खतरा रहता है।
  • ट्रैफिक क़ानूनों का उल्लंघन : In ज़्यादातर घटनाओं में तेज गति से चलते वाहन पैदल राहगीरों को कुचल देते हैं क्योंकि वाहन कि गति जैसे-जैसे तेज होती है, चालक को संभलने के लिए बहुत कम समय मिलता है। और ऐसी स्थिति में टक्कर होने पर मौत होने की आशंका काफी ज्यादा होती है। कभी-कभी वाहन चालकों द्वारा लाल बत्ती का उल्लंघन किया जाना राहगीरों की मौत का कारण बन जाता है।
  • पैदल राहगीरों में अनुशासन की कमी : Pedपैदल चलने वाले कभी भी और कहीं भी सड़क पार कर लेते हैं, वह ट्रैफिक की स्थिति की जरा भी परवाह न करते हुये सड़क पार करने के लिए दौड़ लगा देते हैं।

अतः एक वाहन चालक होने के नाते आपको यह करना चाहिए

  • 1. ट्रैफिक सिग्नल का पालन करें
  • 2. वाहन निर्धारित गति में ही चलाएं
  • 3. वाहन मोड़ते समय, खासतौर पर लाल बत्ती पर दाहिने मोड़ पर पैदल चलने वालों के प्रति सावधान रहें
  • 4. नशे या दवा के प्रभाव में होने पर वाहन चलाने से परहेज करें

पैदल चलने वालों! अपने आप को सुरक्षित रखें

  • फुटपाथ पर चलें, सड़क पर नहीं
  • जहां फुटपाथ न हो वहाँ सामने से आने वाले ट्रैफिक की तरफ मुंह करके चलें जिससे आप देख सकें कि सामने से आपकी तरफ क्या आ रहा है। चूंकि ट्रैफिक सड़क की बाएँ ओर चलता है इसलिए आपको दाहिनी तरफ चलना चाहिए ताकि आप वाहनों को देख सकें और अगर किसी वाहन को चालक सावधानी से नहीं चला रहा है तो आप अपने को बचा सकें। आप ऐसा नहीं कर पाएंगे यदि आप पीछे से आते वाहनों की ओर पीठ करके चलेंगे।
  • यह सुनिश्चित करें कि आप वाहन चालकों को दिखाई दे रहे हैं, खास तौर पर रात के समय। हल्के रंग के कपड़े पहनें, जैसे कि पीले और सफ़ेद रंग के या फिर अपने कपड़ों पर रिफलेक्टर लगाएँ। यह रात के समय आसानी से दिख जाते हैं।
  • स्कूल, बाजार या मित्र के घर जाने का सबसे सुरक्षित रास्ता पहले से सोच कर और प्लान करके रखें।
  • यदि आप चल सकते हैं लेकिन दौड़ नहीं सकते तो सड़क पार करते समय अपने साथ चमकीले रंग की छड़ी अवश्य रखें ताकि वाहन चालक सावधान रहें और गाड़ी धीमी कर लें।
  • सड़क पार करते समय छह बिन्दुओं का पालन करें :
    • सोचें कि सड़क पार करने का सुरक्षित स्थान क्या है?
    • कहाँ से मैं सभी ट्रैफिक को ठीक से देख सकता हूँ?
    • सुनिश्चित करें कि आप किसी खड़ी कार के पीछे छिपे नहीं हैं।
    • जहां से आपने सड़क पार करने का फैसला किया है वहाँ सड़क के किनारे रुकें।
    • सड़क के दोनों ओर कई बार देखें और सुनें, यह देखने के लिए कि क्या कोई ट्रैफिक आ रहा है।
    • इंतजार करें, सभी ट्रैफिक गुजर जाने का और सड़क साफ हो जाने का।
    • सड़क एकदम सीधे पार करें।
    • देखते और सुनते रहें। सड़क पार करते वक्त जब तक आप दूसरी ओर न पहुँच जाएँ, सभी तरफ देखते रहें।

बस यात्री

बस यात्रियों को कभी भी चलती बस में न तो चढ़ना चाहिए न ही उतरना चाहिए।

बस में चढ़ते वक्त लाइन लगाने से अनावश्यक धक्का-मुक्की से बचेंगे और समय की भी बचत होगी।

बस के भीतर शांति रखें। चालक का ध्यान न बंटे इसलिए न चिल्लाएँ न शोर मचाएँ। यदि आप चलती बस में खड़े हैं तो हैंड-रेल पकड़ कर रखें। बस के फ़ुटबोर्ड से दूर रहें। खड़ी या चलती बस से शरीर का कोई अंग कभी भी बाहर न निकालें।

मोटरयुक्त दो-पहिया चलाने के सुरक्षित तरीके

मोटरयुक्त दु-पहिया वाहन चलाने को गंभीर चोट लगने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है, चाहे वह किसी से भी टकराए – किसी पैदल राहगीर से, किसी बिल्ली से या किसी अन्य वाहन से। क्योंकि वह 15 किमी प्रति घंटा से ज्यादा रफ्तार से चल रहा होता है वह भी बिना किसी सुरक्षा के। 15 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ज्यादा पर सिर या कोई अन्य हड्डी के किसी सख्त वस्तु से टकराने पर जो बल उत्पन्न होता है उसे मानव शरीर बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

दुर्घटना से बचें

ऐसा दो तरह से किया जा सकता है :

गति पर नियंत्रण:अधिकांश मामलों में हादसे तेज ड्राइविंग के कारण होते हैं। क्योंकि जो तेज गति से वाहन चला रहा होता है उसे स्थिति पर नियंत्रण के लिए तत्काल उपाय करने के लिए कम समय मिलता है साथ ही उसका वाहन पर नियंत्रण भी कम होता है।

सहज रूप से दिखाई पड़ना : दुपहिया वहाँ चालकों को, खास तौर पर रात में, अपने आप को जितना ज्यादा हो सके सहज रूप से दिखाई पड़ना चाहिए। पीला और सफ़ेद ही एकमात्र रंग हैं जो दिन व रात, दोनों समय, स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इन्हीं रंगों की जैकेट या हेलमेट पहनें। हेलमेट के चारों ओर तथा अपने वाहन के आगे-पीछे और बगल में रेफलेक्टिव पट्टियाँ चिपकाएँ। दिन के वक्त आप अपने वाहन की हेडलाइट जला कर अपनी मौजूदगी दिखा सकते हैं।

हेलमेट

हर बार जब आप वाहन चलाने निकलें, हेलमेट जरूर पहनें। हेलमेट को ठुड्डी के नीचे सही ढंग से स्ट्रैप करें। किसी टक्कर की दशा में हेलमेट सिर की चोट की गंभीरता को घटाने में बहुत कारगर होती हैं।

हेलमेट के बारे में तथ्य :

  • इससे दृश्यता बाधित नहीं होती
  • यह सुनने में कोई रुकावट नहीं डालती
  • यह हेलमेट के भीतर खतरनाक तापमान नहीं बढ़ाती
  • इससे थकान नहीं होती जो टक्कर का कारण होती है।
  • इससे त्वचा संबंधी रोग नहीं होते
  • या गर्दन की चोट की संभावना को नहीं बढ़ाती

किस तरह की हेलमेट इस्तेमाल करनी चाहिए

इसमें थर्मोकोल की मोती परत – कम से कम 20 मिलीमीटर – होनी चाहिए। यह परत सिर के चारों ओर फैली होनी चाहिए। पूरे चेहरे को ढंकने वाली हेलमेट सभी तरह से ज्यादा सुरक्षित होती है।

हेलमेट के हिस्से और उनकी भूमिका

  • खोल : हेलमेट का खोल इंजेक्शन मोल्डेड थर्मोप्लास्टिक या प्रेशर मोल्डेड थेरमोस्टैट होता है जिसे ग्लास फाइबर के मजबूती दी जाती है या यह फाइबरग्लास से बना होता है।
    • टक्कर की स्थिति में यह ऊर्जा को जज़्ब कर लेता है :- हेलमेट में टक्कर लगने पर उसका खोल मुड़ जाता है और अंदर का फोम बिगड़ जाता है। मध्यम गति में खोल टक्कर की ऊर्जा का एक-तिहाई ही ले पाता है।
    • टक्कर होने पर यह स्थानीय बल को बाँट देता है : - निचले बल पर पत्थर या बाहर निकली डंडी जैसी सख्त वस्तुएँ सिर की हड्डी को तोड़ सकती हैं। हेलमेट का खोल ऐसी टक्कर में बल को बाँट देता है जिससे इन वस्तुओं का हेलमेट में घुसने का खतरा खत्म हो जाता है।
    • यह सड़क पर फिसलने देता है : - सख्त और गोलाकार आकार का खोल होने के कारण बिना अत्यधिक बल के हेलमेट सड़क की सतह पर फिसल सकता है।
    • यह चेहरे और कनपटी की सुरक्षा करता है : - पूरे चेहरे वाला हेलमेट चेहरे और जबड़े की रक्षा करने में लाभप्रद होता है। ऐसी हेलमेट में ठुड्डी पर रुकने वाले पट्टे पर सख्त फोम होता है जो ठुड्डी पर सीधे धक्के की स्थिति में ऊर्जा को जज़्ब कर लेता है। यह चेहरे की हड्डियाँ टूटने से और मस्तक व कनपटी पर चोट लगने से बचाता है।
  • फोम लाइनर : यह पॉलीस्टाइरीन दानों की या पॉलीयूथेरीन फोम की ढलाई होती है। यह सिर से दूरी प्रदान करती है। टक्कर कि स्थिति में फोम 90 फीसदी तक दब जाती है, हालांकि बाद में यह आंशिक रूप से उभर जाती है। लेकिन इससे रुकने की दूरी बढ्ने में सहायता मिलती है जिस कारण सिर पर धक्का कम बल से लगता है। यह जितना संभव हो सकता है उतना सिर को बचाता है।
  • स्ट्रैप कसने का सही तरीका : ठुड्डी पर कसने वाली प्रणाली के सही ढंग से काम करने के लिए एक अच्छी तरह से फिट होने वाली हेलमेट पहनना जरूरी है। हेमलेट सही तरीके से आपके सिर पर फिट है यह परखने के लिए ठुड्डी के स्ट्रैप को कस कर बाँधें फिर हेलमेट को पीछे से पकड़ कर आगे की ओर खींच कर उतारने की कोशिश करें। स्ट्रैप सही ढंग से कसा होना चाहिए जिससे कि जब उसे ठुड्डी की तरफ से खींचा जाए तो स्ट्रैप को बकल लॉक कर दे। इसिसलिए स्ट्रैप को जितना बर्दाश्त हो सके उतनी कस कर बांधना चाहिए।

बस और ट्रक ड्राईवर

बस और ट्रक भारी वाहन के अंतर्गत आते हैं। यह हमेशा एकदम बाएँ ओर चलाये जाने चाहिए। इन वाहनों के लिए गति नियंत्रक जरूरी हैं, और बसों व ट्रकों के लिए अधिकतम गति सीमा 40 किमी प्रति घंटा है। बसें और ट्रक कभी भी किसी अन्य वाहन को ओवरटेक नहीं कर सकते। बस चालकों को अपनी बसें निर्धारित लें में चलाना चाहिए और बस स्टॉप के निकट बने बस बॉक्स में ही बस रोकनी चाहिए। पीछे से आ रही बस जिसे उस स्टॉप पर रुकना है उसे पहली बस के पीछे कतार में खड़े हो कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी चाहिए। किसी भी दशा में दूसरी बस को न तो पहली बस के बराबर में खड़ा होना चाहिए न ही उसे ओवरटेक करना चाहिए।

बच्चों के लिए सड़क सुरक्षा

मौत का फंदा –

गुरुकुल और मदरसा के दिनों से बच्चे काफी दिक्कतें सहते हुये अपने शिक्षण स्थल पहुँच पाते थे। उन्हें नंगे पैर घने जंगलों के बीच पगडंडियों पर चलना पड़ता था, मौसम की मार सहनी पड़ती थी। आज पूरा परिदृश्य बादल गया है लेकिन छात्रों के आवागमन की समस्या अब भी बनी हुयी है क्योंकि ‘पब्लिक स्कूल संस्कृति’ के नाम पर बड़ी संख्या में बच्चे ऑटो रिक्शा में ठूंस कर समान की तरह स्कूल ले जाए जाते हैं। हम बच्चों की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जब 15 या उससे भी ज्यादा बच्चे एक छोटे से ऑटो रिक्शा में ठूंस दिये जाते हैं, उनके बैग, और पानी की बोतल उसी वाहन में चारों ओर लटकी रहती हैं। कल्पना कीजिये, अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में ऑटो पलट सकता है और उससे बच्चों की मुस्कान और खुशी हम सबके लिए दर्दनाक पीड़ा में बदल सकती है।

मस्ती की सवारी या मौत का फंदा ?

उनके चेहरों को देखिये। उनकी अलमस्त मुस्कान उन्हें अपनी ही दुनिया में डुबोए हुये है। यह सब आपकी लापरवाही से एक डरावने सपने में परिवर्तित हो सकता है। कल्पना कीजिये क्या होगा यदि एक तेज रफ्तार कार पीछे से टक्कर मार दे; या आपको अचानक ब्रेक लगाना पड़े जिससे बच्चे बाहर गिर पड़ें और पीछे से आ रही कार की चपेट में आ जाएँ। क्या आप ऐसा होने देना चाहेंगे? यह मोटर वेहिकल एक्ट के तहत एक गंभीर ट्रेफिक अपराध है और आप पर दो हजार रुपये तक जुर्माना लग सकता है। अगर पैसे की कोई चिंता नहीं है तो फिर नन्ही मुस्कराती ज़िंदगियों की बारे में क्या? कभी भी खुली डिक्की के साथ कार न चलाएं। अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

बच्चों के लिए सलाह :

हर दिन बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल जाते हैं। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि आप स्कूल जाने और लौटने के रास्ते में अपना ख्याल रखें। नीचे दिये सुरक्षा नियमों को याद रखिए और हमेशा इंका इस्तेमाल करिए!!

  • स्कूल जाते समय
    • सिर्फ फुटपाथ पर चलें। बिना फुटपाथ वाली सड़कों पर एकदम दाहिने चलें। सड़क पर धैर्य न खोएँ। सड़क पर जल्दी न मचाएँ न दौड़ें।
    • सिर्फ फुटपाथ पर चलें। बिना फुटपाथ वाली सड़कों पर एकदम दाहिने चलें। सड़क पर धैर्य न खोएँ। सड़क पर जल्दी न मचाएँ न दौड़ें।
    • सिग्नल पर जब हरी बत्ती हो जाए तभी सड़क पार करें। यदि कोई चौराहा पुलिसवाले, ट्रेफिक वार्डेन या कैडेट द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है तो सड़क तभी पार करें जब वह आपको ऐसा करने का संकेत दे।
    • जब सड़क पर खड़ी गाड़ियों के बीच से सड़क पार करनी हो तो याद रखें कि आप सड़क पार आ-जा रहे वाहनों को दिखाई नहीं पड़ रहे हैं (क्योंकि खड़ी गाड़ियों की ऊंचाई आपसे ज्यादा हो सकती है)। गाड़ी के पीछे से निकालने के बाद रुकें, सुरक्षित रास्ता देखिएन फिर सड़क पार करें। याद रखें कि वाहन चालक को आपको देखने, गाड़ी धीमी करने और रुकने में वक्त लगता है।
    • ऐसी चौड़ी सड़कों को पार करते समय जहां बीच में चबूतरा है, हमेशा दो चरणों में सड़क पार करें। पहले बीच के चबूतरे पर पहुँचें, रुकें फिर जब अगला सेक्शन साफ हो तब सड़क पार करें।
    • वन-वे सड़कों को पार करते समय याद रखें कि ट्रेफिक कई लेन में तेज गति से चल रहा होगा। जब तक सभी लेन खाली न हो जाएँ तब तक सड़क पार न करें।
    • कभी भी मोड़ पर सड़क पार न करें क्योंकि मोटर चालक गाड़ी मोड़ते वक्त आपको समय रहते देख पाने में सक्षम नहीं होंगे।
    • सड़क को दौड़ कर पार करना ठीक नहीं है क्योंकि आप फिसल कर गिर सकते हैं।
  • बस से जाते समय
    • घर से समय से निकलें ताकि आपको बस पकड़ने के लिए दौड़ना न पड़े।
    • बस स्टैंड पर हमेशा लाइन में लगें। बस में तभी चढ़ें जब वह सही जगह पर आ कर रुक गई हो। बस में बिना धक्का मुक्की के चढ़ें।
    • बस के भीतर चिल्लाना या शोर मचाना तमीज़ के खिलाफ है। ऐसा बर्ताव ड्राईवर का ध्यान बंटा सकता है।
    • स्कूल द्वारा तय किए गए बस स्टॉप के अलावा कहीं और से न तो बस में चढ़ें न ही उतरें। कभी भी लाल बत्ती पर या अनधिकृत बस स्टॉप पर बस में न तो चढ़ें, न बस से उतरें।
    • चलती बस में खड़े रहने पर हैंड रेल को पकड़े रहें, खास तौर पर तीव्र मोड पर।
    • बस के फुट बोर्ड पर न तो बैठें, खड़े हों या यात्रा करें।
    • चलती या खड़ी बस से शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें।
    • बस सुरक्षा नियमों का पालन करें।

स्कूली बच्चों के अभिभावकों के लिए सलाह :

  • स्कूल की यात्रा के दौरान बच्चों की सुरक्षा के लिए अभिभावक भी बराबर के जिम्मेदार हैं।
  • अभिभावकों को सजग पर्यवेक्षक की भूमिका निभानी चाहिए। उन्हें स्कूल बस द्वारा की गई गलतियों को नोट करना चाहिए और अधिकारियों को तत्काल बताना चाहिए।
  • अभिभावकों को पेरेंट-टीचर मीटिंग में जरूर हिस्सा लेना चाहिए और अपने बच्चों की सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर चर्चा करनी चाहिए।
  • बच्चों को अगर स्वयं स्कूल ले जा रहे हैं तो उनकी उचित सुरक्षा का खयाल रखिए।
  • अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को सड़क के सुरक्षित इस्तेमाल के तरीके और सही जानकारी है। अभिभावकों को सड़क के मूल नियम सिखाना चाहिए कि सड़क पर कैसे चलें, कैसे सड़क पार करें, बस में कैसे चढ़ें और उतरें आदि।
  • अभिभावकों को अपने अवयस्क बच्चों को वाहन चलाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।
  • अभिभावकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवार द्वारा बच्चों को कानून मानने वाला नागरिक बनाने का सही रुख सिखाया जा रहा है।
  • अभिभावकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवार द्वारा बच्चों को कानून मानने वाला नागरिक बनाने का सही रुख सिखाया जा रहा है।

याद रहे, बच्चों की सुरक्षा हर एक अभिभावक की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

स्कूली बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों को सुझाव :

स्कूल के बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और सड़क के सुरक्शित प्रयोग के बारे में आवश्यक जानकारी, हुनर और मनोदृष्टि प्रदान करना स्कूल प्रशासन और शिक्षकों की ज़िम्मेदारी है।

    • स्कूल के बच्चों में सड़क के प्रयोग के प्रति एक जिम्मेदाराना रवैया विकसित करने में शिक्षकों को मदद करनी चाहिए।
    • शिक्षकों को बच्चों में सड़क और ट्रैफिक के बारे में आवश्यक जानकारी इस प्रकार प्रदान करनी चाहिए :
      • बच्चों को सड़क के नियम और उनकी महत्ता से परिचित करा कर
      • उन्हें पैदल राहगीरों, साइकिल चालकों और बच्चों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं के कारणों के बारे में बता कर
      • उन्हें ट्रेफिक से होने वाले प्रदूषण के कारणों और प्रभाव के बारे में जानकारी दे कर,
    • बच्चे परिवहन के विभिन्न साधनों से स्कूल आते हैं। शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि :
      • बच्चे स्कूल में सुरक्षित तरीके से प्रवेश करें और बाहर जाएँ।
      • पैदल राहगीरों और वाहनों के बीच कोई टकराव न हो।
      • स्कूल बस समेत अन्य वाहन सुरक्षित और उचित ढंग से पार्क हों।
    • स्कूल बस में चढ़ते और उतरते समय बच्चों की निगरानी और देखभाल होनी चाहिए।
    • बच्चों और बस चालक पर नियंत्रण के लिए हर एक स्कूल बस में एक शिक्षक होना चाहिए।
    • अगर स्कूल बस न आए या कोई समस्या हो तो शिक्षक को वैकल्पिक बस की व्यवस्था करनी चाहिए और बच्चों को एक जगह पर एकत्र करके रखना चाहिए।
    • अनिवार्य सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्कूली बसों का नियमित निरीक्षण होना चाहिए।
    • यदि कोई स्कूल बस या कोई अन्य वाहन जिससे बच्चे स्कूल आते हैं, वह यातायात नियमों का उल्लंघन करता है तो शिक्षकों को इसके बारे में प्रधानाध्यापक या यातायात पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना देनी चाहिए।
      • चालकों को भिड़ंत से बचने के लिए बहुत कम समय मिलता है और वाहन को रुकने की दूरी ज्यादा होती है जिसके परिणामस्वरूप सवारियों को गंभीर चोटें आती हैं।
      • वाहन का ढांचा टक्कर का आवेग सहन करने में सक्षम नहीं होता है जिसके कारण वाहन में बैठे लोगों को गंभीर चोट आती हैं।
      • एयर बैग तथा सेफ़्टी बेल्ट जैसे बचाव के उपायों और सड़क की ओर के उपकरण जैसे कि बैरियर और साइड रेलिंग की सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता न्यून हो जाती है।
      • टायर के ज्यादा घिसाव, टायर के बढ़े तापमान से वाहन के रुकने की दूरी बढ़ जाती है और ब्रेक जल्दी घिस जाते हैं।
      • तेज गति में चालक के एकदम सही देखने की क्षमता और दूरी का आंकलन कर पाना मुश्किल हो जाता है।
      • दुर्घटना की स्थिति में
      • सुनिश्चित करें कि घायल व्यक्ति को और चोट न पहुंचे।
      • घायल व्यक्ति को मजबूत और सपाट स्ट्रेचर पर ले जाया जाना चाहिए ताकि रीढ़ की हड्डी एकदम स्थिर रहे।
      • घायल व्यक्ति को ले जाते समय उसकी पीठ, गर्दन और सांस लेने का रास्ता और भी जख्मी होने से बचाया जाना चाहिए। इसलिए अन्य व्यक्ति की मदद ली जानी चाहिए।
      • यदि व्यक्ति बेहोश है तो उसकी गर्दन के नीचे तहाया हुआ कपड़ा या तौलिया बहुत सावधानी से रखना चाहिए ताकि गर्दन नीचे लटक न जाये।
      • घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाने वाले वाहन में पर्याप्त जगह होनी चाहिए कि घायल व्यक्ति एकदम सीधे लिटाया जा सके और साथ में जा रहा व्यक्ति उसकी देखभाल कर सके और जरूरत पड़ने पर उसे कृत्रिम श्वास दे सके।
      • घायल वुयक्ति को ले जाते वक्त नजर रखें कि उसकी श्वास नली में रुकावट नहीं है, वह सांस ले रहा है और आप उसकी नब्ज महसूस कर सकते हैं।
      • यदि सिर्फ एक अंग में चोट लगी है तो घायल व्यक्ति को कुर्सी में बैठा कर अस्पताल सुरक्षित पहुंचाया जा सकता है। हाथ-पैर में चोट लगने पर उसकी सुरक्षा के लिए उसमें खपच्ची बांधने या खून बहना रोकने की व्यवस्था करें।

तेज गति से वाहन चलाने के जोखिम

भीषण टक्कर की वजह तेज गति हो सकती है

प्राथमिक चिकित्सा

चोट लगने की स्थिति में

प्राथमिक चिकित्सा देने वाले का काम है कि वह उन समस्याओं जैसे कि – धूल-मिट्टी, संक्रमण, हिलना-डुलना आदि - को कम करे जिनके कारण घाव भरने में रुकावट आती है। जख्म को वैसा ही छोड़ दे, जख्म को बहती पानी से साफ कर। यदि कांटे, शीशे के टुकड़े या लकड़ी आदि के टूटे टुकड़े घाव में हैं तो उन्हें चिमटी से निकाल दे ताकि संक्रमण न होने पाये।

अत्यधिक खून बहने पर

खून बहना रोकने का सबसे आसान उपाय है कि जख्म पर सीधा दबाव डाला जाय। यह किसी भी साफ और तहाए हुए कपड़े से किया जा सकता है। घाव पर उँगलियों की बजाए हथेली से दबाव डालें। हड्डी टूटने की स्थिति में सीधा दबाव न डालें बल्कि खपच्ची बाँधें और हल्के दबाव के साथ पट्टी बाँधें। घायल व्यक्ति को कुछ भी खाने-पीने को नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए कि यदि उसे आपरेशन या एनेस्थीसिया की जरूरत पड़ती है या उसके सिर में चोट लगी है तो उसे उल्टी करने से बचाने के लिए। यदि हाथ या पैर में चोट से बहुत खून बह रहा है तो उस अंग को ऊंचा रखना चाहिए। इससे जख्म वाली जगह में खून का बहाव कम हो जाता है।

सीने या पेडू में चोट लगने की स्थिति में

पेडू में चोट कि स्थिति में आँतें बाहर आ सकती हैं। प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर आप अच्छी तरह से गीले कपड़े से घाव को ढँक सकते हैं और मरीज को तत्काल अस्पताल ले जाएँ। गीले कपड़े से आँतें सूखने से बच जाएंगी।

सीने के खुले जख्म से हवा भीतर की ओर खिंच सकती है जिससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। घाव को पॉलिथीन के टुकड़े से ढंकने और ऊपर से पट्टी बांधने से सीने के भीतर हवा जाने को कम किया जा सकता है। मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाएँ।

कोई अंग कट कर अलग हो जाने पर

यदि किसी अंग का हिस्सा कट कर अलग हो गया है तो उसे पुनः शरीर में जोड़ा जाना मुमकिन है। कटे अंग को पॉलिथीन के बैग में रखिए और इस बैग को एक अन्य बैग में ठंडे पानी के साथ रखें। अगर बर्फ उपलब्ध हो तो उसका टुकड़ा पानी में डालें ताकि वह ठंडा रहे। ध्यान रखें कि काटा हुआ अंगा पानी में भीगे नहीं। अगर कुछ भी उपलब्ध न हो तो कटे अंग को साफ कपड़े में लपेटें और तुरंत अस्पताल ले जायें।

यदि किसी अंग का हिस्सा कट कर अलग हो गया है तो उसे पुनः शरीर में जोड़ा जाना मुमकिन है। कटे अंग को पॉलिथीन के बैग में रखिए और इस बैग को एक अन्य बैग में ठंडे पानी के साथ रखें। अगर बर्फ उपलब्ध हो तो उसका टुकड़ा पानी में डालें ताकि वह ठंडा रहे। ध्यान रखें कि काटा हुआ अंगा पानी में भीगे नहीं। अगर कुछ भी उपलब्ध न हो तो कटे अंग को साफ कपड़े में लपेटें और तुरंत अस्पताल ले जायें।

आँख में चोट लगने पर

आँख में खुली चोट की स्थिति में उसे न तो साफ करें न ही धोएँ। आँख पर साफ कपड़ा रखें और उसके ऊपरा कोई सख्त चीज़ रखें ताकि आँख पर किसी तरह का दबाव न पड़े। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत छोटे से घाव से भी अवयव दबा कर बाहर निकाले जा सकते हैं।

कान से खून बहने पर कान से खून बहने का मतलब या तो सिर्फ कान की चोट है या फिर सिर में गंभीर चोट है। खून बहना रोकने के लिए कान में कोई भी चीज़ नहीं डालें। क्योंकि इससे कान का पर्दा क्षतिग्रस्त हो सकता है। घायल व्यक्ति को इस तरह लिटा दें कि जख्मी कान नीचे की ओर रहे।

नाक से खून बहने की स्थिति में

नाक से खून बहने का मतलब भी सिर की चोट हो सकता है। यदि मरीज होश में है और बैठ सकता है तो उससे नाक दबा कर रखने और मुंह से सांस लेने को कहें। यदि वह आगे की ओर झुक सकता है तो ऐसा करने से खून उसकी श्वास नली में जाने से बचाया जा सकता है। यदि मरीज बेहोश है तो लिटा कर उसका सिर एक तरफ कर दें ताकि खून आसानी से बह सके और मरीज की श्वास नली में न जाने पाये।

मांसपेशी, हड्डियों और जोड़ों में चोट लगने की स्थिति में

जोड़ों या हड्डी में चोट लगने पर उस जगह पर खून जमा हो जाता है और सूजन हो जाती है। आप रक्तस्राव रोक कर सूजन घटा सकते हैं। यदि मिल सके तो ठंडा पानी या बर्फ चोट वाली जगह पर लगाएँ। इससे उस स्थान पर खून का बहाव रुकता है, आंतरिक रक्तस्राव और सूजन कम होती है। लेकिन याद रखें कि एक बार में बर्फ दस मिनट से ज्यादा देर न रखें क्योंकि ऐसा करने से फ्रास्टबाइट या हिमदंश जैसा कुछ हो सकता है। बर्फ को सीधे त्वचा पर भी न लगाएँ। बर्फ को पहले कपड़े में लपेटें फिर उसे लगाएँ। मांसपेशी में चोट की स्थिति में चोट वाली जगह खपच्ची लगाने से दर्द कम किया जा सकता है।

हड्डी टूटने या जोड़ खिसकने की स्थिति में

फ्रेक्चर या जोड़ खिसकने की पहचान है कि वह अंग सामान्य नहीं दिखता, जोड़ ठीक से मुड़ नहीं पाते, या अंग एकदम ही नहीं मुड़ पा रहे और हड्डी टकराने की आवाज आ रही हो। सभी प्रकार के फ्रेक्चर और जोड़ खिसकने की स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा यही है कि हिलना-डुलना बंद कर दिया जाए। इससे दर्द में आराम मिलेगा। सावधानीपूर्वक खपच्ची बांधना चाहिए। घायल तो तुरंत अस्पताल ले जाएँ।

अस्पताल में घायल स्थानांतरण

WPL
Women Power line
Control Room

Control Room

Fire Brigade

101

Fire Brigade

Ambulance

108

Ambulance

Child Helpline

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